SHIVJI CHALISA IN ALL LANGUAGES

SHIVJI CHALISA IN ASSAMESE

 

জয় গণেশ গিরিজাসুবন মংগল মূল সুজান ।

কহত অয়োধ্যাদাস তুম দেউ অভয় বরদান ॥

 

 

জয় গিরিজাপতি দীনদয়ালা ।

 সদা করত সন্তন প্রতিপালা ॥

 

ভাল চন্দ্রমা সোহত নীকে । 

কানন কুণ্ডল নাগ ফনী কে ॥

 

অংগ গৌর শির গংগ বহায়ে ।

 মুণ্ডমাল তন ক্ষার লগায়ে ॥

 

বস্ত্র খাল বাঘম্বর সোহে । 

ছবি কো দেখি নাগ মন মোহে ॥

 

মৈনা মাতু কি হবে দুলারী ।

 বাম অংগ সোহত ছবি ন্যারী ॥

 

কর ত্রিশূল সোহত ছবি ভারী । 

করত সদা শত্রুন ক্ষয়কারী ॥

 

নংদী গণেশ সোহৈং তহং কৈসে । 

সাগর মধ্য কমল হৈং জৈসে ॥

 

কার্তিক শ্যাম ঔর গণরাঊ ।

 য়া ছবি কৌ কহি জাত ন কাঊ ॥

 

দেবন জবহীং জায় পুকারা ।

 তবহিং দুখ প্রভু আপ নিবারা ॥

 

কিয়া উপদ্রব তারক ভারী । 

দেবন সব মিলি তুমহিং জুহারী ॥

 

তুরত ষডানন আপ পঠায়ৌ । 

লব নিমেষ মহং মারি গিরায়ৌ ॥

 

আপ জলংধর অসুর সংহারা । 

সুয়শ তুম্হার বিদিত সংসারা ॥

 

ত্রিপুরাসুর সন য়ুদ্ধ মচাঈ । 

তবহিং কৃপা কর লীন বচাঈ ॥

 

কিয়া তপহিং ভাগীরথ ভারী । 

পুরব প্রতিজ্ঞা তাসু পুরারী ॥

 

দানিন মহং তুম সম কোউ নাহীং ।

 সেবক স্তুতি করত সদাহীং ॥

 

বেদ মাহি মহিমা তুম গাঈ । 

অকথ অনাদি ভেদ নহীং পাঈ ॥

 

প্রকটে উদধি মংথন মেং জ্বালা । 

জরত সুরাসুর ভএ বিহালা ॥

 

কীন্হ দয়া তহং করী সহাঈ । 

নীলকংঠ তব নাম কহাঈ ॥

 

পূজন রামচংদ্র জব কীন্হাং ।

 জীত কে লংক বিভীষণ দীন্হা ॥

 

সহস কমল মেং হো রহে ধারী । 

কীন্হ পরীক্ষা তবহিং ত্রিপুরারী ॥

 

এক কমল প্রভু রাখেউ জোঈ ।

 কমল নয়ন পূজন চহং সোঈ ॥

 

কঠিন ভক্তি দেখী প্রভু শংকর ।

 ভয়ে প্রসন্ন দিএ ইচ্ছিত বর ॥

 

জয় জয় জয় অনংত অবিনাশী ।

 করত কৃপা সবকে ঘট বাসী ॥

 

দুষ্ট সকল নিত মোহি সতাবৈং । 

ভ্রমত রহৌং মোহে চৈন ন আবৈং ॥

 

ত্রাহি ত্রাহি মৈং নাথ পুকারো । 

য়হ অবসর মোহি আন উবারো ॥

 

লে ত্রিশূল শত্রুন কো মারো । 

সংকট সে মোহিং আন উবারো ॥

 

মাত পিতা ভ্রাতা সব কোঈ । 

সংকট মেং পূছত নহিং কোঈ ॥

 

স্বামী এক হৈ আস তুম্হারী । 

আয় হরহু মম সংকট ভারী ॥

 

ধন নির্ধন কো দেত সদা হী ।

 জো কোঈ জাংচে সো ফল পাহীং ॥

 

অস্তুতি কেহি বিধি করোং তুম্হারী ।

 ক্ষমহু নাথ অব চূক হমারী ॥

 

শংকর হো সংকট কে নাশন । 

মংগল কারণ বিঘ্ন বিনাশন ॥

 

য়োগী য়তি মুনি ধ্যান লগাবৈং । 

শারদ নারদ শীশ নবাবৈং ॥

 

নমো নমো জয় নমঃ শিবায় ।

 সুর ব্রহ্মাদিক পার ন পায় ॥

 

জো য়হ পাঠ করে মন লাঈ । 

তা পর হোত হৈং শম্ভু সহাঈ ॥

 

রনিয়াং জো কোঈ হো অধিকারী । 

পাঠ করে সো পাবন হারী ॥

 

পুত্র হোন কী ইচ্ছা জোঈ । 

নিশ্চয় শিব প্রসাদ তেহি হোঈ ॥

 

পণ্ডিত ত্রয়োদশী কো লাবে ।

 ধ্যান পূর্বক হোম করাবে ॥

 

ত্রয়োদশী ব্রত করৈ হমেশা । 

তন নহিং তাকে রহৈ কলেশা ॥

 

ধূপ দীপ নৈবেদ্য চঢ़াবে । 

শংকর সম্মুখ পাঠ সুনাবে ॥

 

জন্ম জন্ম কে পাপ নসাবে । 

অন্ত ধাম শিবপুর মেং পাবে ॥

 

কহৈং অয়োধ্যাদাস আস তুম্হারী । 

জানি সকল দুখ হরহু হমারী ॥

 

 

নিত নেম উঠি প্রাতঃহী পাঠ করো চালীস ।

তুম মেরী মনকামনা পূর্ণ করো জগদীশ ॥

SHIVJI CHALISA IN BENGALI

 

জয় গণেশ গিরিজাসুবন মংগল মূল সুজান ।

কহত অয়োধ্যাদাস তুম দেউ অভয় বরদান ॥

 

 

জয় গিরিজাপতি দীনদয়ালা ।

 সদা করত সন্তন প্রতিপালা ॥

 

ভাল চন্দ্রমা সোহত নীকে । 

কানন কুণ্ডল নাগ ফনী কে ॥

 

অংগ গৌর শির গংগ বহায়ে ।

 মুণ্ডমাল তন ক্ষার লগায়ে ॥

 

বস্ত্র খাল বাঘম্বর সোহে । 

ছবি কো দেখি নাগ মন মোহে ॥

 

মৈনা মাতু কি হবে দুলারী ।

 বাম অংগ সোহত ছবি ন্যারী ॥

 

কর ত্রিশূল সোহত ছবি ভারী । 

করত সদা শত্রুন ক্ষয়কারী ॥

 

নংদী গণেশ সোহৈং তহং কৈসে । 

সাগর মধ্য কমল হৈং জৈসে ॥

 

কার্তিক শ্যাম ঔর গণরাঊ ।

 য়া ছবি কৌ কহি জাত ন কাঊ ॥

 

দেবন জবহীং জায় পুকারা ।

 তবহিং দুখ প্রভু আপ নিবারা ॥

 

কিয়া উপদ্রব তারক ভারী । 

দেবন সব মিলি তুমহিং জুহারী ॥

 

তুরত ষডানন আপ পঠায়ৌ । 

লব নিমেষ মহং মারি গিরায়ৌ ॥

 

আপ জলংধর অসুর সংহারা । 

সুয়শ তুম্হার বিদিত সংসারা ॥

 

ত্রিপুরাসুর সন য়ুদ্ধ মচাঈ । 

তবহিং কৃপা কর লীন বচাঈ ॥

 

কিয়া তপহিং ভাগীরথ ভারী । 

পুরব প্রতিজ্ঞা তাসু পুরারী ॥

 

দানিন মহং তুম সম কোউ নাহীং ।

 সেবক স্তুতি করত সদাহীং ॥

 

বেদ মাহি মহিমা তুম গাঈ । 

অকথ অনাদি ভেদ নহীং পাঈ ॥

 

প্রকটে উদধি মংথন মেং জ্বালা । 

জরত সুরাসুর ভএ বিহালা ॥

 

কীন্হ দয়া তহং করী সহাঈ । 

নীলকংঠ তব নাম কহাঈ ॥

 

পূজন রামচংদ্র জব কীন্হাং ।

 জীত কে লংক বিভীষণ দীন্হা ॥

 

সহস কমল মেং হো রহে ধারী । 

কীন্হ পরীক্ষা তবহিং ত্রিপুরারী ॥

 

এক কমল প্রভু রাখেউ জোঈ ।

 কমল নয়ন পূজন চহং সোঈ ॥

 

কঠিন ভক্তি দেখী প্রভু শংকর ।

 ভয়ে প্রসন্ন দিএ ইচ্ছিত বর ॥

 

জয় জয় জয় অনংত অবিনাশী ।

 করত কৃপা সবকে ঘট বাসী ॥

 

দুষ্ট সকল নিত মোহি সতাবৈং । 

ভ্রমত রহৌং মোহে চৈন ন আবৈং ॥

 

ত্রাহি ত্রাহি মৈং নাথ পুকারো । 

য়হ অবসর মোহি আন উবারো ॥

 

লে ত্রিশূল শত্রুন কো মারো । 

সংকট সে মোহিং আন উবারো ॥

 

মাত পিতা ভ্রাতা সব কোঈ । 

সংকট মেং পূছত নহিং কোঈ ॥

 

স্বামী এক হৈ আস তুম্হারী । 

আয় হরহু মম সংকট ভারী ॥

 

ধন নির্ধন কো দেত সদা হী ।

 জো কোঈ জাংচে সো ফল পাহীং ॥

 

অস্তুতি কেহি বিধি করোং তুম্হারী ।

 ক্ষমহু নাথ অব চূক হমারী ॥

 

শংকর হো সংকট কে নাশন । 

মংগল কারণ বিঘ্ন বিনাশন ॥

 

য়োগী য়তি মুনি ধ্যান লগাবৈং । 

শারদ নারদ শীশ নবাবৈং ॥

 

নমো নমো জয় নমঃ শিবায় ।

 সুর ব্রহ্মাদিক পার ন পায় ॥

 

জো য়হ পাঠ করে মন লাঈ । 

তা পর হোত হৈং শম্ভু সহাঈ ॥

 

রনিয়াং জো কোঈ হো অধিকারী । 

পাঠ করে সো পাবন হারী ॥

 

পুত্র হোন কী ইচ্ছা জোঈ । 

নিশ্চয় শিব প্রসাদ তেহি হোঈ ॥

 

পণ্ডিত ত্রয়োদশী কো লাবে ।

 ধ্যান পূর্বক হোম করাবে ॥

 

ত্রয়োদশী ব্রত করৈ হমেশা । 

তন নহিং তাকে রহৈ কলেশা ॥

 

ধূপ দীপ নৈবেদ্য চঢ़াবে । 

শংকর সম্মুখ পাঠ সুনাবে ॥

 

জন্ম জন্ম কে পাপ নসাবে । 

অন্ত ধাম শিবপুর মেং পাবে ॥

 

কহৈং অয়োধ্যাদাস আস তুম্হারী । 

জানি সকল দুখ হরহু হমারী ॥

 

 

নিত নেম উঠি প্রাতঃহী পাঠ করো চালীস ।

তুম মেরী মনকামনা পূর্ণ করো জগদীশ ॥

SHIVJI CHALISA IN BODO

Bodo and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN DOGRI

Dogri and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN ENGLISH

Doha
Jai Ganesha Girija suvan mangal mul sujaan,
Kehat ayodhyadas tum deu abhae vardan


Jai girijapati deendeyala sada karat santan pratipala
Bhaal chandrama sohat niike kaanan kundal naagphani ke ||

Ang gaur shir gang bahaye mundmaal tan shaar lagaye,
Vastra khaal baghambar sohe chhavi ko dekh naag mann mohe||


Maina matu ki have dulari baam ang sohat chhavi nyari,
Kar trishul sohat chhavi bhari karat sada shatrun shayakari ||

Nandii ganesha sohain tahu kaise sagar madhya kamal hai jaise,
Kartik sham aur ganrau ya chhavi kau kahi jaat na kau ||


Devan jabhi jai pukara tabhi dukh prabhu aap nivara,
Kiya updrv tarak bhari devan sab mili tumhi juhari ||

Turat shadenan aap pathau lava nimesh maha mari girau,
Aap jalandhar asur sahara suyesh tumhaar vidit sansara ||


Tripurasur san yudh machai sabhi kripa kar leen bachai,
Kiya taphi bhagirath bhari purab pratigea tasu purari ||

|Danin mahe tum sam kou nahi sevak stuti karat sadahi,
Ved mahi mahima tab gaai akath anadi bhed nahi paai ||


Prakat udadhi manthan mein jvala jare surasur bhae vihala,
Kinhe daya tahe kari sahai nilakanth tab naam kahai ||

Pujan ramchandra jab kinha jeet ke lank vibhishan dinha,
Sahas kamal men ho rahe dhari kinhe pariksha tabhi purari ||


Ek kamal prabhu rakheu joyi kamal neyan pujan chahe soi,
Kathin bhakti dekhi prabhu shankar bhae prasan die ichchita var ||

Jai jai jai anant avinashi karat kripa saba ke ghat vasi,
Dusht sakal nit mohi satave bhramat rahe mohi chain ni aave ||


Trahi trahi main nath pukaro yeh avasar mohi aan ubaro,
Le trishul shatrun ko maro sankat se mohi aan ubaro ||

Mata pita bhrata sab koi sankat mein puchat nahi koi,
Swami ek hai aas tumhari aaye harhu abb sankat bhari ||


Dhan nirdhan ko det sadahi jo koi janche so phal pahi,
Astuti kehi vidhi karo tumhari shamahu nath abb chuk hamari ||

Shankar ho sankat ke nashan mangal karan vigihn vinashan,
Yogi yati muni dhyan lagave sharad narad shish nivave ||


 Namo namo jai namo shivaye sur brahmadik paar na paye,
Jo yeh path kre mann lai ta par hot hain shambhu sahai ||

Raniyan jo koi ho adhikari path kare so pavan hari,
Putra heen ki ichcha koi nishchae shiv parsad tehi hoi ||


Pandit trayodashi ko lave dhyan purvak hom karave,
Trayodashi vrat kare hamesha tann nahi take rahe kalesha ||

Dhup deep naivede chadhave shankar samukh path sunave
Janam janam ke paap nasave antvaas shivapur mein pave ||


Kahe ayodhya aas tumhari jani sakal dukh harhu hamari ||

IIDohaaII


Nitt neim pratahi path karo chalisa,
Tum meri manokamana purn karo jagdisha,
 maggsar chathi hement rithu svat chosath jaan,
astut chalisa shive, puran keen kaleyan ||

SHIVJI CHALISA IN GUJRATI

ૐ નમઃ શિવાય

 

દોહા

જય ગણેશ ગિરિજાસુવન મંગલ મૂલ સુજાન .

કહત અયોધ્યાદાસ તુમ દેઉ અભય વરદાન ..

 

જય ગિરિજાપતિ દીનદયાલા .

સદા કરત સન્તન પ્રતિપાલા ..

 

ભાલ ચન્દ્રમા સોહત નીકે .

કાનન કુણ્ડલ નાગ ફની કે ..

 

અંગ ગૌર શિર ગંગ બહાયે .

મુણ્ડમાલ તન ક્ષાર લગાયે ..

 

વસ્ત્ર ખાલ બાઘમ્બર સોહે .

છવિ કો દેખિ નાગ મન મોહે ..

 

મૈના માતુ કિ હવે દુલારી .

વામ અંગ સોહત છવિ ન્યારી ..

 

કર ત્રિશૂલ સોહત છવિ ભારી .

કરત સદા શત્રુન ક્ષયકારી ..

 

નંદી ગણેશ સોહૈં તહં કૈસે .

સાગર મધ્ય કમલ હૈં જૈસે ..

 

કાર્તિક શ્યામ ઔર ગણરાઊ .

યા છવિ કૌ કહિ જાત ન કાઊ ..

 

 

દેવન જબહીં જાય પુકારા .

તબહિં દુખ પ્રભુ આપ નિવારા ..

 

કિયા ઉપદ્રવ તારક ભારી .

દેવન સબ મિલિ તુમહિં જુહારી ..

 

તુરત ષડાનન આપ પઠાયૌ .

લવ નિમેષ મહં મારિ ગિરાયૌ ..

 

આપ જલંધર અસુર સંહારા .

સુયશ તુમ્હાર વિદિત સંસારા ..

 

ત્રિપુરાસુર સન યુદ્ધ મચાઈ .

તબહિં કૃપા કર લીન બચાઈ ..

 

કિયા તપહિં ભાગીરથ ભારી .

પુરબ પ્રતિજ્ઞા તાસુ પુરારી ..

 

દાનિન મહં તુમ સમ કોઉ નાહીં .

સેવક સ્તુતિ કરત સદાહીં ..

 

વેદ માહિ મહિમા તુમ ગાઈ .

અકથ અનાદિ ભેદ નહીં પાઈ ..

 

પ્રકટે ઉદધિ મંથન મેં જ્વાલા .

જરત સુરાસુર ભએ વિહાલા ..

 

કીન્હ દયા તહં કરી સહાઈ .

નીલકંઠ તબ નામ કહાઈ ..

 

પૂજન રામચંદ્ર જબ કીન્હાં .

જીત કે લંક વિભીષણ દીન્હા ..

 

સહસ કમલ મેં હો રહે ધારી .

કીન્હ પરીક્ષા તબહિં ત્રિપુરારી ..

 

એક કમલ પ્રભુ રાખેઉ જોઈ .

કમલ નયન પૂજન ચહં સોઈ ..

 

કઠિન ભક્તિ દેખી પ્રભુ શંકર .

ભયે પ્રસન્ન દિએ ઇચ્છિત વર ..

 

જય જય જય અનંત અવિનાશી .

કરત કૃપા સબકે ઘટ વાસી ..

 

દુષ્ટ સકલ નિત મોહિ સતાવૈં .

ભ્રમત રહૌં મોહે ચૈન ન આવૈં ..

 

ત્રાહિ ત્રાહિ મૈં નાથ પુકારો .

યહ અવસર મોહિ આન ઉબારો ..

 

લે ત્રિશૂલ શત્રુન કો મારો .

સંકટ સે મોહિં આન ઉબારો ..

 

માત પિતા ભ્રાતા સબ કોઈ .

 સંકટ મેં પૂછત નહિં કોઈ ..

 

સ્વામી એક હૈ આસ તુમ્હારી .

આય હરહુ મમ સંકટ ભારી ..

 

ધન નિર્ધન કો દેત સદા હી .

જો કોઈ જાંચે સો ફલ પાહીં ..

 

અસ્તુતિ કેહિ વિધિ કરોં તુમ્હારી .

ક્ષમહુ નાથ અબ ચૂક હમારી ..

 

શંકર હો સંકટ કે નાશન .

મંગલ કારણ વિઘ્ન વિનાશન ..

 

યોગી યતિ મુનિ ધ્યાન લગાવૈં .

શારદ નારદ શીશ નવાવૈં ..

 

નમો નમો જય નમઃ શિવાય .

સુર બ્રહ્માદિક પાર ન પાય ..

 

જો યહ પાઠ કરે મન લાઈ .

 તા પર હોત હૈં શમ્ભુ સહાઈ ..

 

રનિયાં જો કોઈ હો અધિકારી .

 પાઠ કરે સો પાવન હારી ..

 

પુત્ર હોન કી ઇચ્છા જોઈ .

નિશ્ચય શિવ પ્રસાદ તેહિ હોઈ ..

 

પણ્ડિત ત્રયોદશી કો લાવે .

ધ્યાન પૂર્વક હોમ કરાવે ..

 

ત્રયોદશી વ્રત કરૈ હમેશા .

તન નહિં તાકે રહૈ કલેશા ..

 

ધૂપ દીપ નૈવેદ્ય ચઢ઼ાવે .

શંકર સમ્મુખ પાઠ સુનાવે ..

 

જન્મ જન્મ કે પાપ નસાવે .

અન્ત ધામ શિવપુર મેં પાવે ..

 

કહૈં અયોધ્યાદાસ આસ તુમ્હારી .

જાનિ સકલ દુખ હરહુ હમારી ..

 

દોહા

 

નિત નેમ ઉઠિ પ્રાતઃહી પાઠ કરો ચાલીસ .

તુમ મેરી મનકામના પૂર્ણ કરો જગદીશ ..

SHIVJI CHALISA IN HINDI

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN KANNADA

ಓಂ ನಮಃ ಶಿವಾಯ 

ದೋಹಾ

        ಜಯ ಗಣೇಶ ಗಿರಿಜಾಸುವನ ಮಂಗಲ ಮೂಲ ಸುಜಾನ .

ಕಹತ ಅಯೋಧ್ಯಾದಾಸ ತುಮ ದೇಉ ಅಭಯ ವರದಾನ ..  


ಜಯ ಗಿರಿಜಾಪತಿ ದೀನದಯಾಲಾ . 

ಸದಾ ಕರತ ಸಂತನ ಪ್ರತಿಪಾಲಾ .. 


ಭಾಲ ಚಂದ್ರಮಾ ಸೋಹತ ನೀಕೇ . 

ಕಾನನ ಕುಂಡಲ ನಾಗ ಫನೀ ಕೇ .. 


ಅಂಗ ಗೌರ ಶಿರ ಗಂಗ ಬಹಾಯೇ . 

ಮುಂಡಮಾಲ ತನ ಕ್ಷಾರ ಲಗಾಯೇ .. 


ವಸ್ತ್ರ ಖಾಲ ಬಾಘಂಬರ ಸೋಹೇ . 

ಛವಿ ಕೋ ದೇಖಿ ನಾಗ ಮನ ಮೋಹೇ .. 


ಮೈನಾ ಮಾತು ಕಿ ಹವೇ ದುಲಾರೀ . 

ವಾಮ ಅಂಗ ಸೋಹತ ಛವಿ ನ್ಯಾರೀ .. 


ಕರ ತ್ರಿಶೂಲ ಸೋಹತ ಛವಿ ಭಾರೀ . 

ಕರತ ಸದಾ ಶತ್ರುನ ಕ್ಷಯಕಾರೀ ..  


ನಂದೀ ಗಣೇಶ ಸೋಹೈಂ ತಹಂ ಕೈಸೇ . 

ಸಾಗರ ಮಧ್ಯ ಕಮಲ ಹೈಂ ಜೈಸೇ .. 


ಕಾರ್ತಿಕ ಶ್ಯಾಮ ಔರ ಗಣರಾಊ . 

ಯಾ ಛವಿ ಕೌ ಕಹಿ ಜಾತ ನ ಕಾಊ .. 


ದೇವನ ಜಬಹೀಂ ಜಾಯ ಪುಕಾರಾ . 

ತಬಹಿಂ ದುಖ ಪ್ರಭು ಆಪ ನಿವಾರಾ .. 


ಕಿಯಾ ಉಪದ್ರವ ತಾರಕ ಭಾರೀ . 

ದೇವನ ಸಬ ಮಿಲಿ ತುಮಹಿಂ ಜುಹಾರೀ .. 


ತುರತ ಷಡಾನನ ಆಪ ಪಠಾಯೌ . 

ಲವ ನಿಮೇಷ ಮಹಂ ಮಾರಿ ಗಿರಾಯೌ .. 


ಆಪ ಜಲಂಧರ ಅಸುರ ಸಂಹಾರಾ . 

ಸುಯಶ ತುಮ್ಹಾರ ವಿದಿತ ಸಂಸಾರಾ .. 


ತ್ರಿಪುರಾಸುರ ಸನ ಯುದ್ಧ ಮಚಾಈ . 

ತಬಹಿಂ ಕೃಪಾ ಕರ ಲೀನ ಬಚಾಈ ..


 ಕಿಯಾ ತಪಹಿಂ ಭಾಗೀರಥ ಭಾರೀ . 

ಪುರಬ ಪ್ರತಿಜ್ಞಾ ತಾಸು ಪುರಾರೀ .. 


ದಾನಿನ ಮಹಂ ತುಮ ಸಮ ಕೋಉ ನಾಹೀಂ . 

ಸೇವಕ ಸ್ತುತಿ ಕರತ ಸದಾಹೀಂ .. 


ವೇದ ಮಾಹಿ ಮಹಿಮಾ ತುಮ ಗಾಈ . 

ಅಕಥ ಅನಾದಿ ಭೇದ ನಹೀಂ ಪಾಈ ..


 ಪ್ರಕಟೇ ಉದಧಿ ಮಂಥನ ಮೇಂ ಜ್ವಾಲಾ . 

ಜರತ ಸುರಾಸುರ ಭಏ ವಿಹಾಲಾ .. 


ಕೀನ್ಹ ದಯಾ ತಹಂ ಕರೀ ಸಹಾಈ . 

ನೀಲಕಂಠ ತಬ ನಾಮ ಕಹಾಈ .. 


ಪೂಜನ ರಾಮಚಂದ್ರ ಜಬ ಕೀನ್ಹಾಂ . 

ಜೀತ ಕೇ ಲಂಕ ವಿಭೀಷಣ ದೀನ್ಹಾ .. 


ಸಹಸ ಕಮಲ ಮೇಂ ಹೋ ರಹೇ ಧಾರೀ . 

ಕೀನ್ಹ ಪರೀಕ್ಷಾ ತಬಹಿಂ ತ್ರಿಪುರಾರೀ .. 


ಏಕ ಕಮಲ ಪ್ರಭು ರಾಖೇಉ ಜೋಈ . 

ಕಮಲ ನಯನ ಪೂಜನ ಚಹಂ ಸೋಈ .. 


ಕಠಿನ ಭಕ್ತಿ ದೇಖೀ ಪ್ರಭು ಶಂಕರ . 

ಭಯೇ ಪ್ರಸನ್ನ ದಿಏ ಇಚ್ಛಿತ ವರ .. 


ಜಯ ಜಯ ಜಯ ಅನಂತ ಅವಿನಾಶೀ . 

ಕರತ ಕೃಪಾ ಸಬಕೇ ಘಟ ವಾಸೀ .. 


ದುಷ್ಟ ಸಕಲ ನಿತ ಮೋಹಿ ಸತಾವೈಂ . 

ಭ್ರಮತ ರಹೌಂ ಮೋಹೇ ಚೈನ ನ ಆವೈಂ .. 


ತ್ರಾಹಿ ತ್ರಾಹಿ ಮೈಂ ನಾಥ ಪುಕಾರೋ . 

ಯಹ ಅವಸರ ಮೋಹಿ ಆನ ಉಬಾರೋ .. 


ಲೇ ತ್ರಿಶೂಲ ಶತ್ರುನ ಕೋ ಮಾರೋ . 

ಸಂಕಟ ಸೇ ಮೋಹಿಂ ಆನ ಉಬಾರೋ .. 


ಮಾತ ಪಿತಾ ಭ್ರಾತಾ ಸಬ ಕೋಈ . 

ಸಂಕಟ ಮೇಂ ಪೂಛತ ನಹಿಂ ಕೋಈ .. 


ಸ್ವಾಮೀ ಏಕ ಹೈ ಆಸ ತುಮ್ಹಾರೀ . 

ಆಯ ಹರಹು ಮಮ ಸಂಕಟ ಭಾರೀ .. 


ಧನ ನಿರ್ಧನ ಕೋ ದೇತ ಸದಾ ಹೀ . 

ಜೋ ಕೋಈ ಜಾಂಚೇ ಸೋ ಫಲ ಪಾಹೀಂ .. 


ಅಸ್ತುತಿ ಕೇಹಿ ವಿಧಿ ಕರೋಂ ತುಮ್ಹಾರೀ . 

ಕ್ಷಮಹು ನಾಥ ಅಬ ಚೂಕ ಹಮಾರೀ .. 


ಶಂಕರ ಹೋ ಸಂಕಟ ಕೇ ನಾಶನ . 

ಮಂಗಲ ಕಾರಣ ವಿಘ್ನ ವಿನಾಶನ .. 


ಯೋಗೀ ಯತಿ ಮುನಿ ಧ್ಯಾನ ಲಗಾವೈಂ . 

ಶಾರದ ನಾರದ ಶೀಶ ನವಾವೈಂ .. 


ನಮೋ ನಮೋ ಜಯ ನಮಃ ಶಿವಾಯ .

 ಸುರ ಬ್ರಹ್ಮಾದಿಕ ಪಾರ ನ ಪಾಯ ..

 

ಜೋ ಯಹ ಪಾಠ ಕರೇ ಮನ ಲಾಈ . 

ತಾ ಪರ ಹೋತ ಹೈಂ ಶಂಭು ಸಹಾಈ ..

 

ರನಿಯಾಂ ಜೋ ಕೋಈ ಹೋ ಅಧಿಕಾರೀ . 

ಪಾಠ ಕರೇ ಸೋ ಪಾವನ ಹಾರೀ .. 


ಪುತ್ರ ಹೋನ ಕೀ ಇಚ್ಛಾ ಜೋಈ . 

ನಿಶ್ಚಯ ಶಿವ ಪ್ರಸಾದ ತೇಹಿ ಹೋಈ .. 


ಪಂಡಿತ ತ್ರಯೋದಶೀ ಕೋ ಲಾವೇ . 

ಧ್ಯಾನ ಪೂರ್ವಕ ಹೋಮ ಕರಾವೇ ..


 ತ್ರಯೋದಶೀ ವ್ರತ ಕರೈ ಹಮೇಶಾ .

 ತನ ನಹಿಂ ತಾಕೇ ರಹೈ ಕಲೇಶಾ .. 


ಧೂಪ ದೀಪ ನೈವೇದ್ಯ ಚಢ಼ಾವೇ . 

ಶಂಕರ ಸಮ್ಮುಖ ಪಾಠ ಸುನಾವೇ .. 


ಜನ್ಮ ಜನ್ಮ ಕೇ ಪಾಪ ನಸಾವೇ . 

ಅಂತ ಧಾಮ ಶಿವಪುರ ಮೇಂ ಪಾವೇ ..


 ಕಹೈಂ ಅಯೋಧ್ಯಾದಾಸ ಆಸ ತುಮ್ಹಾರೀ .

 ಜಾನಿ ಸಕಲ ದುಖ ಹರಹು ಹಮಾರೀ .. 


ದೋಹಾ ನಿತ ನೇಮ ಉಠಿ ಪ್ರಾತಃಹೀ ಪಾಠ ಕರೋ ಚಾಲೀಸ .

ತುಮ ಮೇರೀ ಮನಕಾಮನಾ ಪೂರ್ಣ ಕರೋ ಜಗದೀಶ ..

SHIVJI CHALISA IN KASHMIRI

Kashmiri and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN KONKANI

Konkani and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN MAITHILI

Meitei and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN MALAYALAM

ഓം നമഃ ശിവായ 

ദോഹാ 

ജയ ഗണേശ ഗിരിജാസുവന മംഗല മൂല സുജാന .

കഹത അയോധ്യാദാസ തുമ ദേഉ അഭയ വരദാന ..  

 

ജയ ഗിരിജാപതി ദീനദയാലാ .

സദാ കരത സന്തന പ്രതിപാലാ .. 

 

ഭാല ചന്ദ്രമാ സോഹത നീകേ .

കാനന കുണ്ഡല നാഗ ഫനീ കേ .. 

 

അംഗ ഗൗര ശിര ഗംഗ ബഹായേ .

മുണ്ഡമാല തന ക്ഷാര ലഗായേ .. 

 

വസ്ത്ര ഖാല ബാഘംബര സോഹേ .

ഛവി കോ ദേഖി നാഗ മന മോഹേ ..  

 

മൈനാ മാതു കി ഹവേ ദുലാരീ .

വാമ അംഗ സോഹത ഛവി ന്യാരീ .. 

 

കര ത്രിശൂല സോഹത ഛവി ഭാരീ .

കരത സദാ ശത്രുന ക്ഷയകാരീ .. 

 

നന്ദീ ഗണേശ സോഹൈം തഹം കൈസേ .

സാഗര മധ്യ കമല ഹൈം ജൈസേ .. 

 

കാർതിക ശ്യാമ ഔര ഗണരാഊ .

യാ ഛവി കൗ കഹി ജാത ന കാഊ .. 

 

ദേവന ജബഹീം ജായ പുകാരാ .

തബഹിം ദുഖ പ്രഭു ആപ നിവാരാ .. 

 

കിയാ ഉപദ്രവ താരക ഭാരീ .

ദേവന സബ മിലി തുമഹിം ജുഹാരീ .. 

 

തുരത ഷഡാനന ആപ പഠായൗ .

ലവ നിമേഷ മഹം മാരി ഗിരായൗ .. 

 

ആപ ജലന്ധര അസുര സംഹാരാ .

സുയശ തുമ്ഹാര വിദിത സംസാരാ .. 

 

ത്രിപുരാസുര സന യുദ്ധ മചാഈ .

തബഹിം കൃപാ കര ലീന ബചാഈ ..

 

 കിയാ തപഹിം ഭാഗീരഥ ഭാരീ .

പുരബ പ്രതിജ്ഞാ താസു പുരാരീ .. 

 

ദാനിന മഹം തുമ സമ കോഉ നാഹീം .

സേവക സ്തുതി കരത സദാഹീം .. 

 

വേദ മാഹി മഹിമാ തുമ ഗാഈ .

അകഥ അനാദി ഭേദ നഹീം പാഈ .. 

 

പ്രകടേ ഉദധി മന്ഥന മേം ജ്വാലാ . 

ജരത സുരാസുര ഭഏ വിഹാലാ .. 

 

കീൻഹ ദയാ തഹം കരീ സഹാഈ .

നീലകണ്ഠ തബ നാമ കഹാഈ .. 

 

പൂജന രാമചന്ദ്ര ജബ കീൻഹാം .

ജീത കേ ലങ്ക വിഭീഷണ ദീൻഹാ .. 

 

സഹസ കമല മേം ഹോ രഹേ ധാരീ .

കീൻഹ പരീക്ഷാ തബഹിം ത്രിപുരാരീ .. 

 

ഏക കമല പ്രഭു രാഖേഉ ജോഈ .

കമല നയന പൂജന ചഹം സോഈ ..

 

 കഠിന ഭക്തി ദേഖീ പ്രഭു ശങ്കര .

ഭയേ പ്രസന്ന ദിഏ ഇച്ഛിത വര ..

 

  ജയ ജയ ജയ അനന്ത അവിനാശീ .

കരത കൃപാ സബകേ ഘട വാസീ .. 

 

ദുഷ്ട സകല നിത മോഹി സതാവൈം .

ഭ്രമത രഹൗം മോഹേ ചൈന ന ആവൈം .. 

 

ത്രാഹി ത്രാഹി മൈം നാഥ പുകാരോ .

യഹ അവസര മോഹി ആന ഉബാരോ ..

 

 ലേ ത്രിശൂല ശത്രുന കോ മാരോ .

സങ്കട സേ മോഹിം ആന ഉബാരോ .. 

 

ഭ്രാതാ സബ കോഈ .

സങ്കട മേം പൂഛത നഹിം കോഈ .. 

 

സ്വാമീ ഏക ഹൈ ആസ തുമ്ഹാരീ .

ആയ ഹരഹു മമ സങ്കട ഭാരീ .. 

 

ധന നിർധന കോ ദേത സദാ ഹീ .

ജോ കോഈ ജാഞ്ചേ സോ ഫല പാഹീം .. 

 

അസ്തുതി കേഹി വിധി കരോം തുമ്ഹാരീ .

ക്ഷമഹു നാഥ അബ ചൂക ഹമാരീ .. 

 

ശങ്കര ഹോ സങ്കട കേ നാശന .

മംഗല കാരണ വിഘ്ന വിനാശന .. 

 

യോഗീ യതി മുനി ധ്യാന ലഗാവൈം . ശാരദ നാരദ ശീശ നവാവൈം .. നമോ നമോ ജയ നമഃ ശിവായ .

സുര ബ്രഹ്മാദിക പാര ന പായ .. 

 

ജോ യഹ പാഠ കരേ മന ലാഈ .

താ പര ഹോത ഹൈം ശംഭു സഹാഈ .. 

 

രനിയാം ജോ കോഈ ഹോ അധികാരീ .

പാഠ കരേ സോ പാവന ഹാരീ .. 

 

പുത്ര ഹോന കീ ഇച്ഛാ ജോഈ .

നിശ്ചയ ശിവ പ്രസാദ തേഹി ഹോഈ .. 

 

പണ്ഡിത ത്രയോദശീ കോ ലാവേ .

ധ്യാന പൂർവക ഹോമ കരാവേ ..

 

 ത്രയോദശീ വ്രത കരൈ ഹമേശാ .

തന നഹിം താകേ രഹൈ കലേശാ .. 

 

ധൂപ ദീപ നൈവേദ്യ ചഢാവേ .

ശങ്കര സമ്മുഖ പാഠ സുനാവേ ..

 

 ജന്മ ജന്മ കേ പാപ നസാവേ .

അന്ത ധാമ ശിവപുര മേം പാവേ ..

 

 കഹൈം അയോധ്യാദാസ ആസ തുമ്ഹാരീ .

ജാനി സകല ദുഖ ഹരഹു ഹമാരീ .. 

 

ദോഹാനിത നേമ ഉഠി പ്രാതഃഹീ പാഠ കരോ ചാലീസ .

തുമ മേരീ മനകാമനാ പൂർണ കരോ ജഗദീശ ..

SHIVJI CHALISA IN MEITEI

Marathi and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN MARATHI

Marathi and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN NEPALI

Nepali and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN ODIA

ଓଁ ନମଃ ଶିବାୟ 

ଦୋହା

ଜୟ ଗଣେଶ ଗିରିଜାସୁବନ ମଂଗଲ ମୂଲ ସୁଜାନ ।

କହତ ଅୟୋଧ୍ୟାଦାସ ତୁମ ଦେଉ ଅଭୟ ବରଦାନ ॥

  

ଜୟ ଗିରିଜାପତି ଦୀନଦୟାଲା । 

ସଦା କରତ ସନ୍ତନ ପ୍ରତିପାଲା ॥ 

 

ଭାଲ ଚନ୍ଦ୍ରମା ସୋହତ ନୀକେ । 

କାନନ କୁଣ୍ଡଲ ନାଗ ଫନୀ କେ ॥

 

 ଅଂଗ ଗୌର ଶିର ଗଂଗ ବହାୟେ ।

 ମୁଣ୍ଡମାଲ ତନ କ୍ଷାର ଲଗାୟେ ॥ 

 

ବସ୍ତ୍ର ଖାଲ ବାଘମ୍ବର ସୋହେ । 

ଛବି କୋ ଦେଖି ନାଗ ମନ ମୋହେ ॥

 

 ମୈନା ମାତୁ କି ହବେ ଦୁଲାରୀ । 

ବାମ ଅଂଗ ସୋହତ ଛବି ନ୍ୟାରୀ ॥ 

 

କର ତ୍ରିଶୂଲ ସୋହତ ଛବି ଭାରୀ । 

କରତ ସଦା ଶତ୍ରୁନ କ୍ଷୟକାରୀ ॥ 

 

ନଂଦୀ ଗଣେଶ ସୋହୈଂ ତହଂ କୈସେ । 

ସାଗର ମଧ୍ୟ କମଲ ହୈଂ ଜୈସେ ॥ 

 

କାର୍ତିକ ଶ୍ୟାମ ଔର ଗଣରାଊ । 

ଯା ଛବି କୌ କହି ଜାତ ନ କାଊ ॥ 

 

ଦେବନ ଜବହୀଂ ଜାୟ ପୁକାରା । 

ତବହିଂ ଦୁଖ ପ୍ରଭୁ ଆପ ନିବାରା ॥

 

 କିୟା ଉପଦ୍ରବ ତାରକ ଭାରୀ ।

 ଦେବନ ସବ ମିଲି ତୁମହିଂ ଜୁହାରୀ ॥ 

 

ତୁରତ ଷଡାନନ ଆପ ପଠାୟୌ । 

ଲବ ନିମେଷ ମହଂ ମାରି ଗିରାୟୌ ॥

 

 ଆପ ଜଲଂଧର ଅସୁର ସଂହାରା । 

ସୁୟଶ ତୁମ୍ହାର ବିଦିତ ସଂସାରା ॥ 

 

ତ୍ରିପୁରାସୁର ସନ ଯୁଦ୍ଧ ମଚାଈ । 

ତବହିଂ କୃପା କର ଲୀନ ବଚାଈ ॥ 

 

କିୟା ତପହିଂ ଭାଗୀରଥ ଭାରୀ । 

ପୁରବ ପ୍ରତିଜ୍ଞା ତାସୁ ପୁରାରୀ ॥ 

 

ଦାନିନ ମହଂ ତୁମ ସମ କୋଉ ନାହୀଂ । 

ସେବକ ସ୍ତୁତି କରତ ସଦାହୀଂ ॥ 

 

ବେଦ ମାହି ମହିମା ତୁମ ଗାଈ ।

 ଅକଥ ଅନାଦି ଭେଦ ନହୀଂ ପାଈ ॥

 

 ପ୍ରକଟେ ଉଦଧି ମଂଥନ ମେଂ ଜ୍ୱାଲା । 

ଜରତ ସୁରାସୁର ଭଏ ବିହାଲା ॥ 

 

କୀନ୍ହ ଦୟା ତହଂ କରୀ ସହାଈ ।

 ନୀଲକଂଠ ତବ ନାମ କହାଈ ॥

 

 ପୂଜନ ରାମଚଂଦ୍ର ଜବ କୀନ୍ହାଂ ।

 ଜୀତ କେ ଲଂକ ବିଭୀଷଣ ଦୀନ୍ହା ॥ 

 

ସହସ କମଲ ମେଂ ହୋ ରହେ ଧାରୀ । 

କୀନ୍ହ ପରୀକ୍ଷା ତବହିଂ ତ୍ରିପୁରାରୀ ॥

 

 ଏକ କମଲ ପ୍ରଭୁ ରାଖେଉ ଜୋଈ ।

 କମଲ ନୟନ ପୂଜନ ଚହଂ ସୋଈ ॥

 

 କଠିନ ଭକ୍ତି ଦେଖୀ ପ୍ରଭୁ ଶଂକର ।

 ଭୟେ ପ୍ରସନ୍ନ ଦିଏ ଇଚ୍ଛିତ ବର ॥ 

 

ଜୟ ଜୟ ଜୟ ଅନଂତ ଅବିନାଶୀ ।

 କରତ କୃପା ସବକେ ଘଟ ବାସୀ ॥

 

 ଦୁଷ୍ଟ ସକଲ ନିତ ମୋହି ସତାବୈଂ । 

ଭ୍ରମତ ରହୌଂ ମୋହେ ଚୈନ ନ ଆବୈଂ ॥ 

 

ତ୍ରାହି ତ୍ରାହି ମୈଂ ନାଥ ପୁକାରୋ । 

ଯହ ଅବସର ମୋହି ଆନ ଉବାରୋ ॥ 

 

ଲେ ତ୍ରିଶୂଲ ଶତ୍ରୁନ କୋ ମାରୋ ।

 ସଂକଟ ସେ ମୋହିଂ ଆନ ଉବାରୋ ॥

 

 ମାତ ପିତା ଭ୍ରାତା ସବ କୋଈ ।

 ସଂକଟ ମେଂ ପୂଛତ ନହିଂ କୋଈ ॥

 

 ସ୍ୱାମୀ ଏକ ହୈ ଆସ ତୁମ୍ହାରୀ ।

 ଆୟ ହରହୁ ମମ ସଂକଟ ଭାରୀ ॥

 

 ଧନ ନିର୍ଧନ କୋ ଦେତ ସଦା ହୀ । 

ଜୋ କୋଈ ଜାଂଚେ ସୋ ଫଲ ପାହୀଂ ॥ 

 

ଅସ୍ତୁତି କେହି ବିଧି କରୋଂ ତୁମ୍ହାରୀ । 

କ୍ଷମହୁ ନାଥ ଅବ ଚୂକ ହମାରୀ ॥

 

 ଶଂକର ହୋ ସଂକଟ କେ ନାଶନ ।

 ମଂଗଲ କାରଣ ବିଘ୍ନ ବିନାଶନ ॥

 

 ଯୋଗୀ ଯତି ମୁନି ଧ୍ୟାନ ଲଗାବୈଂ ।

 ଶାରଦ ନାରଦ ଶୀଶ ନବାବୈଂ ॥ 

 

ନମୋ ନମୋ ଜୟ ନମଃ ଶିବାୟ ।

 ସୁର ବ୍ରହ୍ମାଦିକ ପାର ନ ପାୟ ॥

 

 ଜୋ ଯହ ପାଠ କରେ ମନ ଲାଈ ।

 ତା ପର ହୋତ ହୈଂ ଶମ୍ଭୁ ସହାଈ ॥

 

 ରନିୟାଂ ଜୋ କୋଈ ହୋ ଅଧିକାରୀ ।

 ପାଠ କରେ ସୋ ପାବନ ହାରୀ ॥

 

 ପୁତ୍ର ହୋନ କୀ ଇଚ୍ଛା ଜୋଈ । 

ନିଶ୍ଚୟ ଶିବ ପ୍ରସାଦ ତେହି ହୋଈ ॥

 

 ପଣ୍ଡିତ ତ୍ରୟୋଦଶୀ କୋ ଲାବେ ।

 ଧ୍ୟାନ ପୂର୍ୱକ ହୋମ କରାବେ ॥ 

 

ତ୍ରୟୋଦଶୀ ବ୍ରତ କରୈ ହମେଶା ।

 ତନ ନହିଂ ତାକେ ରହୈ କଲେଶା ॥

 

 ଧୂପ ଦୀପ ନୈବେଦ୍ୟ ଚଢ଼ାବେ ।

 ଶଂକର ସମ୍ମୁଖ ପାଠ ସୁନାବେ ॥

 

 ଜନ୍ମ ଜନ୍ମ କେ ପାପ ନସାବେ ।

 ଅନ୍ତ ଧାମ ଶିବପୁର ମେଂ ପାବେ ॥ 

 

କହୈଂ ଅୟୋଧ୍ୟାଦାସ ଆସ ତୁମ୍ହାରୀ ।

 ଜାନି ସକଲ ଦୁଖ ହରହୁ ହମାରୀ ॥ 

 

ଦୋହାନିତ ନେମ ଉଠି ପ୍ରାତଃହୀ ପାଠ କରୋ ଚାଲୀସ ।

ତୁମ ମେରୀ ମନକାମନା ପୂର୍ଣ କରୋ ଜଗଦୀଶ ॥

SHIVJI CHALISA IN PUNJABI

ੴ ਨਮਃ ਸ਼ਿਵਾਯ 

ਦੋਹਾ

 

ਜਯ ਗਣੇਸ਼ ਗਿਰਿਜਾਸੁਵਨ ਮੰਗਲ ਮੂਲ ਸੁਜਾਨ ।

ਕਹਤ ਅਯੋਧ੍ਯਾਦਾਸ ਤੁਮ ਦੇਉ ਅਭਯ ਵਰਦਾਨ ॥

 

ਜਯ ਗਿਰਿਜਾਪਤਿ ਦੀਨਦਯਾਲਾ ।

ਸਦਾ ਕਰਤ ਸਨ੍ਤਨ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥

 

ਭਾਲ ਚਨ੍ਦ੍ਰਮਾ ਸੋਹਤ ਨੀਕੇ ।

ਕਾਨਨ ਕੁਣ੍ਡਲ ਨਾਗ ਫਨੀ ਕੇ ॥

 

ਅੰਗ ਗੌਰ ਸ਼ਿਰ ਗੰਗ ਬਹਾਯੇ ।

ਮੁਣ੍ਡਮਾਲ ਤਨ ਕ੍ਸ਼਼ਾਰ ਲਗਾਯੇ ॥

 

ਵਸ੍ਤ੍ਰ ਖਾਲ ਬਾਘਮ੍ਬਰ ਸੋਹੇ ।

ਛਵਿ ਕੋ ਦੇਖਿ ਨਾਗ ਮਨ ਮੋਹੇ ॥

 

ਮੈਨਾ ਮਾਤੁ ਕਿ ਹਵੇ ਦੁਲਾਰੀ ।

ਵਾਮ ਅੰਗ ਸੋਹਤ ਛਵਿ ਨ੍ਯਾਰੀ ॥

 

ਕਰ ਤ੍ਰਿਸ਼ੂਲ ਸੋਹਤ ਛਵਿ ਭਾਰੀ ।

ਕਰਤ ਸਦਾ ਸ਼ਤ੍ਰੁਨ ਕ੍ਸ਼਼ਯਕਾਰੀ ॥

 

ਨੰਦੀ ਗਣੇਸ਼ ਸੋਹੈਂ ਤਹੰ ਕੈਸੇ ।

ਸਾਗਰ ਮਧ੍ਯ ਕਮਲ ਹੈਂ ਜੈਸੇ ॥

 

ਕਾਰ੍ਤਿਕ ਸ਼੍ਯਾਮ ਔਰ ਗਣਰਾਊ ।

ਯਾ ਛਵਿ ਕੌ ਕਹਿ ਜਾਤ ਨ ਕਾਊ ॥

 

ਦੇਵਨ ਜਬਹੀਂ ਜਾਯ ਪੁਕਾਰਾ ।

ਤਬਹਿੰ ਦੁਖ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪ ਨਿਵਾਰਾ ॥

 

ਕਿਯਾ ਉਪਦ੍ਰਵ ਤਾਰਕ ਭਾਰੀ ।

ਦੇਵਨ ਸਬ ਮਿਲਿ ਤੁਮਹਿੰ ਜੁਹਾਰੀ ॥

 

ਤੁਰਤ ਸ਼਼ਡਾਨਨ ਆਪ ਪਠਾਯੌ ।

ਲਵ ਨਿਮੇਸ਼਼ ਮਹੰ ਮਾਰਿ ਗਿਰਾਯੌ ॥

 

ਆਪ ਜਲੰਧਰ ਅਸੁਰ ਸੰਹਾਰਾ ।

ਸੁਯਸ਼ ਤੁਮ੍ਹਾਰ ਵਿਦਿਤ ਸੰਸਾਰਾ ॥

 

ਤ੍ਰਿਪੁਰਾਸੁਰ ਸਨ ਯੁੱਧ ਮਚਾਈ ।

ਤਬਹਿੰ ਕ੍ਰੁਪਾ ਕਰ ਲੀਨ ਬਚਾਈ ॥

 

ਕਿਯਾ ਤਪਹਿੰ ਭਾਗੀਰਥ ਭਾਰੀ ।

ਪੁਰਬ ਪ੍ਰਤਿਜ੍ਞਾ ਤਾਸੁ ਪੁਰਾਰੀ ॥

 

 ਦਾਨਿਨ ਮਹੰ ਤੁਮ ਸਮ ਕੋਉ ਨਾਹੀਂ ।

ਸੇਵਕ ਸ੍ਤੁਤਿ ਕਰਤ ਸਦਾਹੀਂ ॥

 

ਵੇਦ ਮਾਹਿ ਮਹਿਮਾ ਤੁਮ ਗਾਈ ।

ਅਕਥ ਅਨਾਦਿ ਭੇਦ ਨਹੀਂ ਪਾਈ ॥

 

ਪ੍ਰਕਟੇ ਉਦਧਿ ਮੰਥਨ ਮੇਂ ਜ੍ਵਾਲਾ ।

ਜਰਤ ਸੁਰਾਸੁਰ ਭਏ ਵਿਹਾਲਾ ॥

 

ਕੀਨ੍ਹ ਦਯਾ ਤਹੰ ਕਰੀ ਸਹਾਈ ।

ਨੀਲਕੰਠ ਤਬ ਨਾਮ ਕਹਾਈ ॥

 

ਪੂਜਨ ਰਾਮਚੰਦ੍ਰ ਜਬ ਕੀਨ੍ਹਾਂ ।

ਜੀਤ ਕੇ ਲੰਕ ਵਿਭੀਸ਼਼ਣ ਦੀਨ੍ਹਾ ॥

 

ਸਹਸ ਕਮਲ ਮੇਂ ਹੋ ਰਹੇ ਧਾਰੀ ।

ਕੀਨ੍ਹ ਪਰੀਕ੍ਸ਼਼ਾ ਤਬਹਿੰ ਤ੍ਰਿਪੁਰਾਰੀ ॥

 

ਏਕ ਕਮਲ ਪ੍ਰਭੁ ਰਾਖੇਉ ਜੋਈ ।

ਕਮਲ ਨਯਨ ਪੂਜਨ ਚਹੰ ਸੋਈ ॥

 

ਕਠਿਨ ਭਕ੍ਤਿ ਦੇਖੀ ਪ੍ਰਭੁ ਸ਼ੰਕਰ ।

ਭਯੇ ਪ੍ਰਸੰਨ ਦਿਏ ਇੱਛਿਤ ਵਰ ॥

 

ਜਯ ਜਯ ਜਯ ਅਨੰਤ ਅਵਿਨਾਸ਼ੀ ।

ਕਰਤ ਕ੍ਰੁਪਾ ਸਬਕੇ ਘਟ ਵਾਸੀ ॥

 

ਦੁਸ਼਼੍ਟ ਸਕਲ ਨਿਤ ਮੋਹਿ ਸਤਾਵੈਂ ।

ਭ੍ਰਮਤ ਰਹੌਂ ਮੋਹੇ ਚੈਨ ਨ ਆਵੈਂ ॥

 

ਤ੍ਰਾਹਿ ਤ੍ਰਾਹਿ ਮੈਂ ਨਾਥ ਪੁਕਾਰੋ ।

ਯਹ ਅਵਸਰ ਮੋਹਿ ਆਨ ਉਬਾਰੋ ॥

 

ਲੇ ਤ੍ਰਿਸ਼ੂਲ ਸ਼ਤ੍ਰੁਨ ਕੋ ਮਾਰੋ ।

ਸੰਕਟ ਸੇ ਮੋਹਿੰ ਆਨ ਉਬਾਰੋ ॥

 

ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਭ੍ਰਾਤਾ ਸਬ ਕੋਈ ।

ਸੰਕਟ ਮੇਂ ਪੂਛਤ ਨਹਿੰ ਕੋਈ ॥

 

ਸ੍ਵਾਮੀ ਏਕ ਹੈ ਆਸ ਤੁਮ੍ਹਾਰੀ ।

ਆਯ ਹਰਹੁ ਮਮ ਸੰਕਟ ਭਾਰੀ ॥

 

ਧਨ ਨਿਰ੍ਧਨ ਕੋ ਦੇਤ ਸਦਾ ਹੀ ।

ਜੋ ਕੋਈ ਜਾਂਚੇ ਸੋ ਫਲ ਪਾਹੀਂ ॥

 

ਅਸ੍ਤੁਤਿ ਕੇਹਿ ਵਿਧਿ ਕਰੋਂ ਤੁਮ੍ਹਾਰੀ ।

ਕ੍ਸ਼਼ਮਹੁ ਨਾਥ ਅਬ ਚੂਕ ਹਮਾਰੀ ॥

 

ਸ਼ੰਕਰ ਹੋ ਸੰਕਟ ਕੇ ਨਾਸ਼ਨ ।

ਮੰਗਲ ਕਾਰਣ ਵਿਘ੍ਨ ਵਿਨਾਸ਼ਨ ॥

 

ਯੋਗੀ ਯਤਿ ਮੁਨਿ ਧ੍ਯਾਨ ਲਗਾਵੈਂ ।

ਸ਼ਾਰਦ ਨਾਰਦ ਸ਼ੀਸ਼ ਨਵਾਵੈਂ ॥

 

ਨਮੋ ਨਮੋ ਜਯ ਨਮਃ ਸ਼ਿਵਾਯ ।

ਸੁਰ ਬ੍ਰਹ੍ਮਾਦਿਕ ਪਾਰ ਨ ਪਾਯ ॥

 

ਜੋ ਯਹ ਪਾਠ ਕਰੇ ਮਨ ਲਾਈ ।

ਤਾ ਪਰ ਹੋਤ ਹੈਂ ਸ਼ਮ੍ਭੁ ਸਹਾਈ ॥

 

ਰਨਿਯਾਂ ਜੋ ਕੋਈ ਹੋ ਅਧਿਕਾਰੀ ।

ਪਾਠ ਕਰੇ ਸੋ ਪਾਵਨ ਹਾਰੀ ॥

 

ਪੁਤ੍ਰ ਹੋਨ ਕੀ ਇੱਛਾ ਜੋਈ ।

ਨਿਸ਼੍ਚਯ ਸ਼ਿਵ ਪ੍ਰਸਾਦ ਤੇਹਿ ਹੋਈ ॥

 

ਪਣ੍ਡਿਤ ਤ੍ਰਯੋਦਸ਼ੀ ਕੋ ਲਾਵੇ ।

ਧ੍ਯਾਨ ਪੂਰ੍ਵਕ ਹੋਮ ਕਰਾਵੇ ॥

 

ਤ੍ਰਯੋਦਸ਼ੀ ਵ੍ਰਤ ਕਰੈ ਹਮੇਸ਼ਾ ।

ਤਨ ਨਹਿੰ ਤਾਕੇ ਰਹੈ ਕਲੇਸ਼ਾ ॥

 

ਧੂਪ ਦੀਪ ਨੈਵੇਦ੍ਯ ਚਢ਼ਾਵੇ ।

ਸ਼ੰਕਰ ਸੰਮੁਖ ਪਾਠ ਸੁਨਾਵੇ ॥

 

ਜਨ੍ਮ ਜਨ੍ਮ ਕੇ ਪਾਪ ਨਸਾਵੇ ।

ਅਨ੍ਤ ਧਾਮ ਸ਼ਿਵਪੁਰ ਮੇਂ ਪਾਵੇ ॥

 

ਕਹੈਂ ਅਯੋਧ੍ਯਾਦਾਸ ਆਸ ਤੁਮ੍ਹਾਰੀ ।

ਜਾਨਿ ਸਕਲ ਦੁਖ ਹਰਹੁ ਹਮਾਰੀ ॥

 

ਦੋਹਾਨਿਤ ਨੇਮ ਉਠਿ ਪ੍ਰਾਤਃਹੀ ਪਾਠ ਕਰੋ ਚਾਲੀਸ ।

ਤੁਮ ਮੇਰੀ ਮਨਕਾਮਨਾ ਪੂਰ੍ਣ ਕਰੋ ਜਗਦੀਸ਼ ॥

SHIVJI CHALISA IN SANSKRIT

Sanskrit and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN SANTALI

Santali and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN SINDHI

Sindhi and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of ShivJi Chalisa written in Awadhi dialect. 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

 

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

 

अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये॥

 

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

 

मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

 

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

 

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

 

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

 

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

 

किया उपद्रव तारक भारी।

 देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

 

तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

 

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

 

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

 

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

 

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

 

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला॥

 

कीन्ह दया तहँ करी सहाई।

 नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

 

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

 जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

 

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

 

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

 

जय जय जय अनंत अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी॥

 

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

 

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट से मोहि आन उबारो॥

 

मातु पिता भ्राता सब कोई।

 संकट में पूछत नहिं कोई॥

 

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु अब संकट भारी॥

 

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

 

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

 

शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

 

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं॥

 

नमो नमो जय नमो शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

 

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पार होत है शम्भु सहाई॥

 

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

 पाठ करे सो पावन हारी॥

 

पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

 

पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

 

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

 

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

 

जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्तवास शिवपुर में पावे॥

 

कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥

 

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

SHIVJI CHALISA IN TAMIL

ஶிவ சாலீஸா

 

 நம꞉ ஶிவாய

 

தோ³ஹா

ஜய க³ணேஶ கி³ரிஜாஸுவன மங்க³ல மூல ஸுஜான .

கஹத அயோத்⁴யாதா³ஸ தும தே³உ அப⁴ய வரதா³ன ..

 

 

ஜய கி³ரிஜாபதி தீ³னத³யாலா .

ஸதா³ கரத ஸந்தன ப்ரதிபாலா ..

 

 

பா⁴ல சந்த்³ரமா ஸோஹத நீகே .

 கானன குண்ட³ல நாக³ ப²னீ கே ..

 

 

அங்க³ கௌ³ர ஶிர க³ங்க³ ப³ஹாயே .

முண்ட³மால தன க்ஷார லகா³யே ..

 

 

வஸ்த்ர கா²ல பா³க⁴ம்ப³ர ஸோஹே .

ச²வி கோ தே³கி² நாக³ மன மோஹே ..

 

 

மைனா மாது கி ஹவே து³லாரீ .

வாம அங்க³ ஸோஹத ச²வி ந்யாரீ ..

 

 

கர த்ரிஶூல ஸோஹத ச²வி பா⁴ரீ .

கரத ஸதா³ ஶத்ருன க்ஷயகாரீ ..

 

 

நந்தீ³ க³ணேஶ ஸோஹைம்ʼ தஹம்ʼ கைஸே .

ஸாக³ர மத்⁴ய கமல ஹைம்ʼ ஜைஸே ..

 

 

கார்திக ஶ்யாம ஔர க³ணராஊ .

 யா ச²வி கௌ கஹி ஜாத ந காஊ ..

 

 

தே³வன ஜப³ஹீம்ʼ ஜாய புகாரா .

தப³ஹிம்ʼ து³க² ப்ரபு⁴ ஆப நிவாரா ..

 

 

கியா உபத்³ரவ தாரக பா⁴ரீ .

தே³வன ஸப³ மிலி துமஹிம்ʼ ஜுஹாரீ ..

 

 

துரத ஷடா³னன ஆப படா²யௌ .

 லவ நிமேஷ மஹம்ʼ மாரி கி³ராயௌ ..

 

 

ஆப ஜலந்த⁴ர அஸுர ஸம்ʼஹாரா .

 ஸுயஶ தும்ஹார விதி³த ஸம்ʼஸாரா ..

 

 

த்ரிபுராஸுர ஸன யுத்³த⁴ மசாஈ .

தப³ஹிம்ʼ க்ருʼபா கர லீன ப³சாஈ ..

 

 

கியா தபஹிம்ʼ பா⁴கீ³ரத² பா⁴ரீ .

புரப³ ப்ரதிஜ்ஞா தாஸு புராரீ ..

 

 

தா³னின மஹம்ʼ தும ஸம கோஉ நாஹீம்ʼ .

ஸேவக ஸ்துதி கரத ஸதா³ஹீம்ʼ ..

 

 

வேத³ மாஹி மஹிமா தும கா³ஈ .

அகத² அநாதி³ பே⁴த³ நஹீம்ʼ பாஈ ..

 

 

ப்ரகடே உத³தி⁴ மந்த²ன மேம்ʼ ஜ்வாலா .

ஜரத ஸுராஸுர ப⁴ஏ விஹாலா ..

 

 

கீன்ஹ த³யா தஹம்ʼ கரீ ஸஹாஈ .

நீலகண்ட² தப³ நாம கஹாஈ ..

 

 

பூஜன ராமசந்த்³ர ஜப³ கீன்ஹாம்ʼ .

ஜீத கே லங்க விபீ⁴ஷண தீ³ன்ஹா ..

 

 

ஸஹஸ கமல மேம்ʼ ஹோ ரஹே தா⁴ரீ .

கீன்ஹ பரீக்ஷா தப³ஹிம்ʼ த்ரிபுராரீ ..

 

 

ஏக கமல ப்ரபு⁴ ராகே²உ ஜோஈ .

கமல நயன பூஜன சஹம்ʼ ஸோஈ ..

 

 

கடி²ன ப⁴க்தி தே³கீ² ப்ரபு⁴ ஶங்கர .

ப⁴யே ப்ரஸன்ன தி³ஏ இச்சி²த வர ..

 

 

ஜய ஜய ஜய அனந்த அவிநாஶீ .

கரத க்ருʼபா ஸப³கே க⁴ட வாஸீ ..

 

 

து³ஷ்ட ஸகல நித மோஹி ஸதாவைம்ʼ .

ப்⁴ரமத ரஹௌம்ʼ மோஹே சைன ந ஆவைம்ʼ ..

 

 

த்ராஹி த்ராஹி மைம்ʼ நாத² புகாரோ .

யஹ அவஸர மோஹி ஆன உபா³ரோ ..

 

 

லே த்ரிஶூல ஶத்ருன கோ மாரோ .

ஸங்கட ஸே மோஹிம்ʼ ஆன உபா³ரோ ..

 

 

மாத பிதா ப்⁴ராதா ஸப³ கோஈ .

ஸங்கட மேம்ʼ பூச²த நஹிம்ʼ கோஈ ..

 

 

ஸ்வாமீ ஏக ஹை ஆஸ தும்ஹாரீ .

 ஆய ஹரஹு மம ஸங்கட பா⁴ரீ ..

 

 

த⁴ன நிர்த⁴ன கோ தே³த ஸதா³ ஹீ .

ஜோ கோஈ ஜாஞ்சே ஸோ ப²ல பாஹீம்ʼ ..

 

 

அஸ்துதி கேஹி விதி⁴ கரோம்ʼ தும்ஹாரீ .

 க்ஷமஹு நாத² அப³ சூக ஹமாரீ ..

 

 

ஶங்கர ஹோ ஸங்கட கே நாஶன .

மங்க³ல காரண விக்⁴ன விநாஶன ..

 

 

யோகீ³ யதி முனி த்⁴யான லகா³வைம்ʼ .

 ஶாரத³ நாரத³ ஶீஶ நவாவைம்ʼ ..

 

 

நமோ நமோ ஜய நம꞉ ஶிவாய .

ஸுர ப்³ரஹ்மாதி³க பார ந பாய ..

 

 

ஜோ யஹ பாட² கரே மன லாஈ .

 தா பர ஹோத ஹைம்ʼ ஶம்பு⁴ ஸஹாஈ ..

 

 

ரனியாம்ʼ ஜோ கோஈ ஹோ அதி⁴காரீ .

பாட² கரே ஸோ பாவன ஹாரீ ..

 

 

புத்ர ஹோன கீ இச்சா² ஜோஈ .

நிஶ்சய ஶிவ ப்ரஸாத³ தேஹி ஹோஈ ..

 

 

பண்டி³த த்ரயோத³ஶீ கோ லாவே .

 த்⁴யான பூர்வக ஹோம கராவே ..

 

 

த்ரயோத³ஶீ வ்ரத கரை ஹமேஶா .

தன நஹிம்ʼ தாகே ரஹை கலேஶா ..

 

 

தூ⁴ப தீ³ப நைவேத்³ய சஃடா³வே .

ஶங்கர ஸம்முக² பாட² ஸுனாவே ..

 

 

ஜன்ம ஜன்ம கே பாப நஸாவே .

அந்த தா⁴ம ஶிவபுர மேம்ʼ பாவே ..

 

 

கஹைம்ʼ அயோத்⁴யாதா³ஸ ஆஸ தும்ஹாரீ .

 ஜானி ஸகல து³க² ஹரஹு ஹமாரீ ..

 

 

தோ³ஹா

 

நித நேம உடி² ப்ராத꞉ஹீ பாட² கரோ சாலீஸ .

தும மேரீ மனகாமனா பூர்ண கரோ ஜக³தீ³ஶ ..

SHIVJI CHALISA IN TELUGU

ఓం నమః శివాయ 

దోహా

జయ గణేశ గిరిజాసువన మంగల మూల సుజాన .

కహత అయోధ్యాదాస తుమ దేఉ అభయ వరదాన ..

 

 జయ గిరిజాపతి దీనదయాలా .

సదా కరత సంతన ప్రతిపాలా .. 

 

భాల చంద్రమా సోహత నీకే .

కానన కుండల నాగ ఫనీ కే .. 

 

అంగ గౌర శిర గంగ బహాయే .

ముండమాల తన క్షార లగాయే .. 

 

వస్త్ర ఖాల బాఘంబర సోహే .

ఛవి కో దేఖి నాగ మన మోహే .. 

 

మైనా మాతు కి హవే దులారీ .

వామ అంగ సోహత ఛవి న్యారీ .. 

 

కర త్రిశూల సోహత ఛవి భారీ .

కరత సదా శత్రున క్షయకారీ .. 

 

నందీ గణేశ సోహైం తహం కైసే .

సాగర మధ్య కమల హైం జైసే .. 

 

కార్తిక శ్యామ ఔర గణరాఊ .

యా ఛవి కౌ కహి జాత న కాఊ .. 

 

దేవన జబహీం జాయ పుకారా .

తబహిం దుఖ ప్రభు ఆప నివారా .. 

 

కియా ఉపద్రవ తారక భారీ .

దేవన సబ మిలి తుమహిం జుహారీ .. 

 

తురత షడానన ఆప పఠాయౌ .

లవ నిమేష మహం మారి గిరాయౌ .. 

 

ఆప జలంధర అసుర సంహారా .

సుయశ తుమ్హార విదిత సంసారా .. 

 

త్రిపురాసుర సన యుద్ధ మచాఈ .

తబహిం కృపా కర లీన బచాఈ .. 

 

కియా తపహిం భాగీరథ భారీ .

పురబ ప్రతిజ్ఞా తాసు పురారీ .. 

 

దానిన మహం తుమ సమ కోఉ నాహీం .

సేవక స్తుతి కరత సదాహీం .. 

 

వేద మాహి మహిమా తుమ గాఈ .

అకథ అనాది భేద నహీం పాఈ .. 

 

ప్రకటే ఉదధి మంథన మేం జ్వాలా .

జరత సురాసుర భఏ విహాలా .. 

 

కీన్హ దయా తహం కరీ సహాఈ .

నీలకంఠ తబ నామ కహాఈ ..

 

 పూజన రామచంద్ర జబ కీన్హాం .

జీత కే లంక విభీషణ దీన్హా ..

 

 సహస కమల మేం హో రహే ధారీ .

కీన్హ పరీక్షా తబహిం త్రిపురారీ .. 

 

ఏక కమల ప్రభు రాఖేఉ జోఈ .

కమల నయన పూజన చహం సోఈ .. 

 

కఠిన భక్తి దేఖీ ప్రభు శంకర .

భయే ప్రసన్న దిఏ ఇచ్ఛిత వర .. 

 

జయ జయ జయ అనంత అవినాశీ .

కరత కృపా సబకే ఘట వాసీ .. 

 

దుష్ట సకల నిత మోహి సతావైం .

భ్రమత రహౌం మోహే చైన న ఆవైం .. 

 

త్రాహి త్రాహి మైం నాథ పుకారో .

యహ అవసర మోహి ఆన ఉబారో .. 

 

లే త్రిశూల శత్రున కో మారో .

సంకట సే మోహిం ఆన ఉబారో .. 

 

మాత పితా భ్రాతా సబ కోఈ .

సంకట మేం పూఛత నహిం కోఈ .. 

 

స్వామీ ఏక హై ఆస తుమ్హారీ .

ఆయ హరహు మమ సంకట భారీ .. 

 

ధన నిర్ధన కో దేత సదా హీ .

జో కోఈ జాంచే సో ఫల పాహీం .. 

 

అస్తుతి కేహి విధి కరోం తుమ్హారీ .

క్షమహు నాథ అబ చూక హమారీ .. 

 

శంకర హో సంకట కే నాశన .

మంగల కారణ విఘ్న వినాశన .. 

 

యోగీ యతి ముని ధ్యాన లగావైం .

శారద నారద శీశ నవావైం ..

 

నమో నమో జయ నమః శివాయ .

సుర బ్రహ్మాదిక పార న పాయ ..

 

జో యహ పాఠ కరే మన లాఈ .

తా పర హోత హైం శంభు సహాఈ ..

 

రనియాం జో కోఈ హో అధికారీ .

పాఠ కరే సో పావన హారీ ..

 

పుత్ర హోన కీ ఇచ్ఛా జోఈ .

నిశ్చయ శివ ప్రసాద తేహి హోఈ ..

 

పండిత త్రయోదశీ కో లావే .

ధ్యాన పూర్వక హోమ కరావే ..

 

త్రయోదశీ వ్రత కరై హమేశా .

తన నహిం తాకే రహై కలేశా ..

 

ధూప దీప నైవేద్య చఢావే .

శంకర సమ్ముఖ పాఠ సునావే ..

 

జన్మ జన్మ కే పాప నసావే .

అంత ధామ శివపుర మేం పావే ..

 

కహైం అయోధ్యాదాస ఆస తుమ్హారీ .

జాని సకల దుఖ హరహు హమారీ ..

 

దోహా నిత నేమ ఉఠి ప్రాతఃహీ పాఠ కరో చాలీస .

తుమ మేరీ మనకామనా పూర్ణ కరో జగదీశ ..

SHIVJI CHALISA IN URDU

دوہاجَیَ گَنیشَ گِرِجاسُوَنَ مَںگَلَ مُولَ سُجانَ ۔کَہَتَ اَیودھْیاداسَ تُمَ دےءاُ اَبھَیَ وَرَدانَ ۔۔. جَیَ گِرِجاپَتِ دِینَدَیالا ۔ سَدا کَرَتَ سَنْتَنَ پْرَتِپالا ۔۔بھالَ چَنْدْرَما سوہَتَ نِیکے ۔ کانَنَ کُنْڈَلَ ناگَ پھَنِی کے ۔۔اَںگَ گَورَ شِرَ گَںگَ بَہایے ۔ مُنْڈَمالَ تَنَ کْشارَ لَگایے ۔۔وَسْتْرَ کھالَ باگھَمْبَرَ سوہے ۔ چھَوِ کو دیکھِ ناگَ مَنَ موہے ۔۔مَینا ماتُ کِ ہَوے دُلارِی ۔ وامَ اَںگَ سوہَتَ چھَوِ نْیارِی ۔۔کَرَ تْرِشُولَ سوہَتَ چھَوِ بھارِی ۔ کَرَتَ سَدا شَتْرُنَ کْشَیَکارِی ۔۔نَںدِی گَنیشَ سوہَیں تَہَں کَیسے ۔ ساگَرَ مَدھْیَ کَمَلَ ہَیں جَیسے ۔۔کارْتِکَ شْیامَ اَورَ گَنَراءاُو ۔ یا چھَوِ کَو کَہِ جاتَ نَ کاءاُو ۔۔دیوَنَ جَبَہِیں جایَ پُکارا ۔ تَبَہِں دُکھَ پْرَبھُ آپَ نِوارا ۔۔کِیا اُپَدْرَوَ تارَکَ بھارِی ۔ دیوَنَ سَبَ مِلِ تُمَہِں جُہارِی ۔۔تُرَتَ شَڈانَنَ آپَ پَٹھایَو ۔ لَوَ نِمیشَ مَہَں مارِ گِرایَو ۔۔آپَ جَلَںدھَرَ اَسُرَ سَںہارا ۔ سُیَشَ تُمْہارَ وِدِتَ سَںسارا ۔۔تْرِپُراسُرَ سَنَ یُدّھَ مَچائی ۔ تَبَہِں کْرِپا کَرَ لِینَ بَچائی ۔۔کِیا تَپَہِں بھاگِیرَتھَ بھارِی ۔ پُرَبَ پْرَتِجْنا تاسُ پُرارِی ۔۔دانِنَ مَہَں تُمَ سَمَ کوءاُ ناہِیں ۔ سیوَکَ سْتُتِ کَرَتَ سَداہِیں ۔۔ویدَ ماہِ مَہِما تُمَ گائی ۔ اَکَتھَ اَنادِ بھیدَ نَہِیں پائی ۔۔پْرَکَٹے اُدَدھِ مَںتھَنَ میں جْوالا ۔ جَرَتَ سُراسُرَ بھاے وِہالا ۔۔کِینْہَ دَیا تَہَں کَرِی سَہائی ۔ نِیلَکَںٹھَ تَبَ نامَ کَہائی ۔۔پُوجَنَ رامَچَںدْرَ جَبَ کِینْہاں ۔ جِیتَ کے لَںکَ وِبھِیشَنَ دِینْہا ۔۔سَہَسَ کَمَلَ میں ہو رَہے دھارِی ۔ کِینْہَ پَرِیکْشا تَبَہِں تْرِپُرارِی ۔۔ایکَ کَمَلَ پْرَبھُ راکھےءاُ جوئی ۔ کَمَلَ نَیَنَ پُوجَنَ چَہَں سوئی ۔۔کَٹھِنَ بھَکْتِ دیکھِی پْرَبھُ شَںکَرَ ۔ بھَیے پْرَسَنَّ دِئے اِچّھِتَ وَرَ ۔۔جَیَ جَیَ جَیَ اَنَںتَ اَوِناشِی ۔ کَرَتَ کْرِپا سَبَکے گھَٹَ واسِی ۔۔دُشْٹَ سَکَلَ نِتَ موہِ سَتاوَیں ۔ بھْرَمَتَ رَہَوں موہے چَینَ نَ آوَیں ۔۔تْراہِ تْراہِ مَیں ناتھَ پُکارو ۔ یَہَ اَوَسَرَ موہِ آنَ اُبارو ۔۔لے تْرِشُولَ شَتْرُنَ کو مارو ۔ سَںکَٹَ سے موہِں آنَ اُبارو ۔۔ماتَ پِتا بھْراتا سَبَ کوئی ۔ سَںکَٹَ میں پُوچھَتَ نَہِں کوئی ۔۔سْوامِی ایکَ ہَے آسَ تُمْہارِی ۔ آیَ ہَرَہُ مَمَ سَںکَٹَ بھارِی ۔۔دھَنَ نِرْدھَنَ کو دیتَ سَدا ہِی ۔ جو کوئی جاںچے سو پھَلَ پاہِیں ۔۔اَسْتُتِ کیہِ وِدھِ کَروں تُمْہارِی ۔ کْشَمَہُ ناتھَ اَبَ چُوکَ ہَمارِی ۔۔شَںکَرَ ہو سَںکَٹَ کے ناشَنَ ۔ مَںگَلَ کارَنَ وِگھْنَ وِناشَنَ ۔۔یوگِی یَتِ مُنِ دھْیانَ لَگاوَیں ۔ شارَدَ نارَدَ شِیشَ نَواوَیں ۔۔نَمو نَمو جَیَ نَمَہ شِوایَ ۔ سُرَ بْرَہْمادِکَ پارَ نَ پایَ ۔۔جو یَہَ پاٹھَ کَرے مَنَ لائی ۔ تا پَرَ ہوتَ ہَیں شَمْبھُ سَہائی ۔۔رَنِیاں جو کوئی ہو اَدھِکارِی ۔ پاٹھَ کَرے سو پاوَنَ ہارِی ۔۔پُتْرَ ہونَ کِی اِچّھا جوئی ۔ نِشْچَیَ شِوَ پْرَسادَ تیہِ ہوئی ۔۔پَنْڈِتَ تْرَیودَشِی کو لاوے ۔ دھْیانَ پُورْوَکَ ہومَ کَراوے ۔۔تْرَیودَشِی وْرَتَ کَرَے ہَمیشا ۔ تَنَ نَہِں تاکے رَہَے کَلیشا ۔۔دھُوپَ دِیپَ نَیویدْیَ چَڑھاوے ۔ شَںکَرَ سَمُّکھَ پاٹھَ سُناوے ۔۔جَنْمَ جَنْمَ کے پاپَ نَساوے ۔ اَنْتَ دھامَ شِوَپُرَ میں پاوے ۔۔کَہَیں اَیودھْیاداسَ آسَ تُمْہارِی ۔ جانِ سَکَلَ دُکھَ ہَرَہُ ہَمارِی ۔۔ دوہانِتَ نیمَ اُٹھِ پْراتَہہِی پاٹھَ کَرو چالِیسَ ۔تُمَ میرِی مَنَکامَنا پُورْنَ کَرو جَگَدِیشَ ۔۔

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