SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 ,SHLOKA 1 , 2nd December , 2022

मुनियों की जिज्ञासा

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट् तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः ।

तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥ १॥

 

हे प्रभु, हे वसुदेवपुत्र श्रीकृष्ण, हे सर्वव्यापी भगवान्! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

मैं भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ;

क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति, पालन तथा संहार के समस्त कारणों के आदिकारण हैं।

वे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सम्पूर्ण जगत् से अवगत रहते हैं और वे परम स्वतन्त्र हैं, क्योंकि उनसे परे अन्य कोई कारण है ही नहीं।

उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्मा के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया।

उन्हीं के कारण बड़े-बड़े मुनि तथा देवता उसी प्रकार मोह में पड़ जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि में जल या जल में स्थल देखकर कोई माया द्वारा मोहग्रस्त हो जाता है।

उन्हीं के कारण ये समस्त भौतिक ब्रह्माण्ड, जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं, वास्तविक लगते हैं जबकि ये अवास्तविक होते हैं।

अतः मैं उन भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ, जो भौतिक जगत् के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरन्तर वास करते हैं। मैं उनका ध्यान करता हूँ, क्योंकि वे ही परम सत्य हैं।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 2 , 3rd December 2022

धर्मः प्रोज्झितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां वेद्यं वास्तवमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम्। 

श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वरः सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्र कृतिभिः शुश्रूषुभिस्तत्क्षणात् ॥ २ ॥

 

यह श्रीमद्भागवत् पुराण भौतिक कारणों से प्रेरित होने वाले समस्त धार्मिक कृत्यों को पूर्ण रूप से बहिष्कृत करते हुए सर्वोच्च सत्य का प्रतिपादन करता है, जो पूर्ण रूप से शुद्ध हृदय वाले भक्तों के लिए बोधगम्य है। 

यह सर्वोच्च सत्य वास्तविकता है, जो माया से पृथक् होते हुए सबके कल्याण के लिए है। 

ऐसा सत्य तीनों प्रकार के संतापों को समूल नष्ट करने वाला है। 

महामुनि श्रील व्यासदेव द्वारा (अपनी परिपक्व अवस्था में) संकलित यह सुन्दर श्रीमद्भागवत् पुराण ईश्वर-साक्षात्कार के लिए अपने आपमें पर्याप्त है। तो फिर अन्य किसी

शास्त्र की क्या आवश्यकता है ? जैसे ही कोई ध्यानपूर्वक तथा विनीतभाव से श्रीमद्भागवतम् के संदेश को सुनता है, वैसे-वैसे ज्ञान के इस संस्कार (अनुशीलन) से उसके हृदय में परम भगवान् स्थापित हो जाते हैं।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 3 , 4th December 2022 , Sunday

निगमकल्पतरोर्गलितं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् । 

पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः ॥ ३॥

हे विज्ञ एवं विचारशील जनों!

वैदिक साहित्य रूपी कल्पवृक्ष इस परिपक्व फल श्रीमद्भागवतम् का रसास्वादन करो।

यह श्रील शुकदेव गोस्वामी के मुख से निःसृत हुआ है, अतएव यह और भी अधिक रुचिकर हो गया है, यद्यपि इसका अमृत रस मुक्त जीवों सहित समस्त जनों के लिए पूर्व से ही आस्वाद्य था ।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1, SHLOKA 4 , 5th December 2022 , Monday

नैमिषेऽनिमिषक्षेत्रे ऋषयः शौनकादयः । 

सत्रं स्वर्गायलोकाय सहस्रसममासत ॥४॥

 

एक बार नैमिषारण्य के वन में एक पवित्र स्थल पर शौनक आदि महान् ऋषिगण श्रीभगवान् तथा उनके भक्तों को प्रसन्न करने हेतु एक हजार वर्षों तक चलने वाले यज्ञ को सम्पन्न करने के उद्देश्य से एकत्र हुए।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 5 , 6th December 2022 , Tuesday

ते क न त एकदा तु मुनयः प्रातर्हुतहुताग्नयः ।

सत्कृतं सूतमासीनं पप्रच्छुरिदमादरात् ॥ ५ ॥

एक दिन यज्ञाग्नि प्रज्ज्वलित करके अपने प्रातःकालीन कृत्यों से निवृत्त होकर तथा श्रील सूत गोस्वामी को आदरपूर्वक आसन अर्पण करके ऋषियों ने सम्मानपूर्वक निम्नलिखित विषयों पर प्रश्न पूछे।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1, SHLOKA 6 , 7th December 2022 , Wednesday

त्वया खलु पुराणानि सेतिहासानि चानघ ।

आख्यातान्यप्यधीतानि धर्मशास्त्राणि यान्युत ॥ ६ ॥

ऋषियों ने कहा- हे पूज्य सूत गोस्वामी!

आप समस्त प्रकार के पापों से पूर्ण रूप से मुक्त हैं।

आप धार्मिक जीवन के लिए विख्यात समस्त शास्त्रों एवं पुराणों के साथ-साथ इतिहासों में भी निपुण हैं, क्योंकि आपने समुचित निर्देशन में उन्हें पढ़ा है और उनकी व्याख्या भी की है।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 ,  SHLOKA 7 , 8th December 2022 , Thursday

यानि वेदविदां श्रेष्ठो भगवान् बादरायणः ।

अन्ये च मुनयः सूत परावरविदो विदुः ॥ ७॥

 

हे सूत गोस्वामी!

आप ज्येष्ठतम विद्वान् एवं वेदान्ती होने के कारण ईश्वर के अवतार श्रील व्यासदेव के ज्ञान से अवगत हैं और आप उन अन्य मुनियों को भी जानते हैं, जो सभी प्रकार के भौतिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान में निपुण हैं।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 8 , 9th December 2022 ,  Friday

वेत्थ त्वं सौम्य तत्सर्वं तत्त्वतस्तदनुग्रहात् ।

ब्रूयुः स्निग्धस्य शिष्यस्य गुरवो गुह्यमप्युत ॥ ८ ॥

इससे भी अधिक, चूँकि आप विनीत हैं, आपके गुरुओं ने एक सौम्य शिष्य जानकर आप पर सभी प्रकार से अनुग्रह किया है।

अतः आप हमें वह सब बताएँ, जिसे आपने उनसे वैज्ञानिक ढंग से सीखा है।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 9 , 10th December 2022 ,  Saturday

तत्र तत्राञ्जसायुष्मन् भवता यद्विनिश्चितम् ।

पुंसामेकान्ततः श्रेयस्तन्नः शंसितुमर्हसि ॥ ९॥

अतएव, दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होने के कारण आप सरलता से में आने वाली विधि से हमें समझाइये कि आपने जनसाधारण के समग्र एवं परम कल्याण के लिए क्या निश्चय किया है ?

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 ,  SHLOKA 10 , 11th December 2022 ,  Sunday

प्रायेणाल्पायुषः सभ्य कलावस्मिन् युगे जनाः ।

मन्दाः सुमन्दमतयो मन्दभाग्या ह्युपद्रुताः ॥ १०॥

 

हे विद्वान ! कलि के इस लौह युग में मनुष्यों की आयु कम है।

वे झगड़ालू, आलसी, पथभ्रष्ट, अभागे होते हैं तथा साथ ही साथ सदैव विचलित रहते हैं।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1, SHLOKA 11 , 12th December 2022 ,  Monday

भूरीणि भूरिकर्माणि श्रोतव्यानि विभागशः ।

अतः साधोऽत्र यत्सारं समुद्धृत्य मनीषया ।

ब्रूहि भद्राय भूतानां येनात्मा सुप्रसीदति ॥ ११॥

 

शास्त्रों के अनेक प्रकार हैं और उन सब में अनेक नियमित कर्मों का उल्लेख है, जिनके विभिन्न प्रभागों का वर्षों तक अध्ययन करके ही सीखा जा सकता है।

अतः हे साधु! कृपया आप इन समस्त शास्त्रों का सार चुनकर समस्त जीवों के कल्याण हेतु समझाएँ, जिससे उस उपदेश से उनके हृदय पूर्णरूपेण तुष्ट हो जाएँ ।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 12 , 13th December 2022 ,  Tuesday

सूत जानासि भद्रं ते भगवान् सात्वतां पतिः ।

देवक्यां वसुदेवस्य जातो यस्य चिकीर्षया ॥ १२॥

हे सूत गोस्वामी! आपका कल्याण हो।

आप जानते हैं कि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् देवकी के गर्भ से वसुदेव के पुत्र के रूप में किस उद्देश्य से प्रकट हुए।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 ,  SHLOKA 13 , 14th December 2022 ,  Wednesday

तन्नः शुश्रूषमाणानामर्हस्यङ्गानुवर्णितुम् ।

यस्यावतारो भूतानां क्षेमाय च भवाय च ॥ १३ ॥

 

हे सूत गोस्वामी! हम श्रीभगवान् तथा उनके अवतारों के विषय में जानने हेतु उत्सुक हैं।

कृपया हमें पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा दिये गए उपदेशों को बताइए, क्योंकि उनके वचनों का श्रवण तथा कीर्तन दोनों करने से ही की उन्नति होती है।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1,  SHLOKA 14 , 15th December 2022 ,  Thursday

आपन्नः संसृतिं घोरां यन्नाम विवशो गृणन् ।

ततः सद्यो विमुच्येत यद्विभेति स्वयं भयम् ॥ १४॥

जन्म तथा मृत्यु के जटिल जाल में उलझे हुए जीव यदि अनजाने में भी भगवान् श्रीकृष्ण के पवित्र नाम का उच्चारण करते हैं, तो वे तुरन्त मुक्त हो जाते हैं; क्योंकि साक्षात् भय भी इससे (हरिनाम से) भयभीत रहता है।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 15 , 16th December 2022 ,  Friday

यत्पादसंश्रयाः सूत मुनयः प्रशमायनाः ।

सद्यः पुनन्त्युपस्पृष्टाः स्वर्धुन्यापोऽनुसेवया ॥ १५ ॥

हे सूत गोस्वामी! जिन महान् ऋषियों ने पूर्ण रूप से श्रीभगवान् के चरणकमलों की शरण ग्रहण कर ली है, वे अपने सम्पर्क में आने वालों को तुरन्त पवित्र कर देते हैं, जबकि गंगाजल दीर्घकाल तक उपयोग करने के बाद ही पवित्र कर पाता है।

SAKANDH 1 , ADHAYAYE 1 ,SHLOKA 16 , 17th December 2022 ,  Saturday

को वा भगवतस्तस्य पुण्यश्लोकेड्यकर्मणः ।

शुद्धिकामो न शृणुयाद्यशः कलिमलापहम् ॥ १६॥

इस कलहप्रधान युग के पापों से उद्धार पाने का इच्छुक ऐसा कौन है, जो श्रीभगवान् के पुण्य यशों को सुनना नहीं चाहेगा ?

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 17 , 18th December 2022 ,  Sunday

तस्य कर्माण्युदाराणि परिगीतानि सूरिभिः ।

ब्रूहि नः श्रद्दधानानां लीलया दधतः कलाः ॥ १७॥

 

उनके दिव्य कर्म अत्यन्त उदार तथा अनुग्रहपूर्ण हैं और श्रीनारदमुनि जैसे महान् विद्वान् मुनि उनका गुणगान करते हैं।

अतः कृपया हमें उनके विविध अवतारों में सम्पन्न अद्भुत लीलाओं के विषय में बताएँ, क्योंकि हम सुनने हेतु उत्सुक हैं।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 18 , 19th December 2022 ,  Monday

अथाख्याहि हरेर्धीमन्नवतारकथाः शुभाः ।

लीला विदधतः स्वैरमीश्वरस्यात्ममायया ॥ १८ ॥

 

हे बुद्धिमान् सूतजी! कृपा करके हमसे श्रीभगवान् के विविध अवतारों की दिव्य लीलाओं का वर्णन करें।

परम नियन्ता श्रीभगवान् के ऐसे कल्याणप्रद अद्भुत कार्य तथा लीलाएँ उनकी अन्तरंगी शक्तियों द्वारा सम्पन्न होते हैं।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 19 , 20th December 2022 ,  Tuesday

वयं तु न वितृप्याम उत्तमश्लोकविक्रमे ।

यच्छृण्वतां रसज्ञानां स्वादु स्वादु पदे पदे ॥ १९॥

 

हम उन श्रीभगवान् की दिव्य लीलाओं को सुनते थकते नहीं, जिनका यशगान स्तोत्रों तथा स्तुतियों द्वारा किया जाता है।

उनके साथ दिव्य सम्बन्ध के लिए जिन्होंने अभिरुचि विकसित कर ली है, वे प्रतिक्षण उनकी लीलाओं के श्रवण का आस्वादन करते हैं।

SAKANDH 1  , ADHYAYE 1 , SHLOKA 20 , 21st December 2022 ,  Wednesday

कृतवान् किल कर्माणि सह रामेण केशवः ।

अतिमर्त्यानि भगवान् गूढः कपटमानुषः ॥ २०॥ 

 

भगवान् श्रीकृष्ण ने बलराम सहित मनुष्य की भाँति क्रीड़ाएँ कीं और इस प्रकार से प्रच्छन्न रहकर उन्होंने अनेक अलौकिक कृत्य किये।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1, SHLOKA 21 , 22nd December 2022 ,  Thursday

कलिमागतमाज्ञाय क्षेत्रेऽस्मिन् वैष्णवे वयम् ।

आसीना दीर्घसत्रेण कथायां सक्षणा हरेः ॥२१॥

यह भली-भाँति जानकर कि कलियुग का प्रारम्भ हो चुका है, हम इस पवित्र स्थल में श्रीभगवान् का दिव्य संदेश विस्तार से सुनने हेतु तथा इस प्रकार यज्ञ सम्पन्न करने हेतु दीर्घसत्र में एकत्र हुए हैं।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 ,  SHLOKA 22 , 23rd December 2022 , Friday

त्वं नः सन्दर्शितो धात्रा दुस्तरं निस्तितीर्षताम् ।

कलिं सत्त्वहरं पुंसां कर्णधार इवार्णवम् ॥ २२॥

 

हम मानते हैं कि सौभाग्य से हम आपसे मिल पाए हैं, जिससे मनुष्यों के सद्गुणों का नाश करने वाले उस कलि रूप दुर्लंघ्य सागर को पार करने की इच्छा रखने वाले हम सब आपको नौका के कप्तान के रूप में स्वीकार कर सकें।

SAKANDH 1 , ADHYAYE 1 , SHLOKA 23 , 24th December 2022 , Saturday

ब्रूहि योगेश्वरे कृष्णे ब्रह्मण्ये धर्मवर्मणि ।

स्वां काष्ठामधुनोपेते धर्मः कं शरणं गतः ॥ २३ ॥

 

चूँकि परम सत्य, योगेश्वर, भगवान् श्रीकृष्ण अपने निज धाम के लिए प्रयाण कर चुके हैं, अतएव कृपा करके हमें बताएँ कि अब धर्म ने किसका आश्रय लिया है ?

SAKANDH 1 , ADHYAYE  2 , SHLOKA 1 , 25th December 2022 , Sunday

दिव्यता तथा दिव्य सेवा

व्यास उवाच

इति सम्प्रश्नसंहृष्टो विप्राणां रौमहर्षणिः ।

प्रतिपूज्य वचस्तेषां प्रवक्तुमुपचक्रमे ॥ १ ॥

रोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा (श्रील सूत गोस्वामी) ने ब्राह्मणों के सम्यक् प्रश्नों से पूर्णतः प्रसन्न होकर उन्हें धन्यवाद दिया और वे उत्तर देने का प्रयास करने लगे।

SAKANDH 1 , ADHYAYE  2 , SHLOKA 2 , 26th December 2022 , Monday

सूत उवाच

यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव ।

पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु- स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ॥२॥

श्रील सूत गोस्वामी ने कहा- मैं उन महामुनि (श्रील शुकदेव गोस्वामी) को सादर नमस्कार करता हूँ, जो सबके हृदय में प्रवेश करने में समर्थ हैं।

जब वे यज्ञोपवीत संस्कार अथवा उच्च जातियों द्वारा किये जाने वाले अनुष्ठानों को सम्पन्न किये बिना संन्यास ग्रहण करने चले तो उनके पिता श्रील व्यासदेव ने उनके वियोग के भय से आतुर होकर पुकारा, “हे पुत्र!” जो उस समय वैसी ही वियोग की भावना में लीन उन्हें मात्र ऐसे वृक्षों ने शोकग्रस्त पिता के शब्दों का प्रतिध्वनि के रूप में उत्तर दिया।

SAKANDH 1 , ADHYAYE  2 , SHLOKA 3 , 27th December 2022 ,  Tuesday

यः स्वानुभावमखिलश्रुतिसारमेक- मध्यात्मदीपमतितितीर्षतां तमोऽन्धम् ।

 संसारिणां करुणयाह पुराणगुह्यं तं व्याससूनुमुपयामि गुरुं मुनीनाम् ॥ ३ ॥

 

मैं समस्त मुनियों के गुरु, श्रील व्यासदेव के पुत्र (श्रील शुकदेव ) को सादर नमस्कार करता हूँ, जिन्होंने संसार के गहन अन्धकारमय क्षेत्रों को पार करने हेतु संघर्षशील उन निपट भौतिकवादियों के प्रति अनुकम्पा करके वैदिक ज्ञान के साररूप इस परम गुह्य पुराण स्वयं आत्मसात् करने के बाद कह सुनाया।

SAKANDH 1 , ADHYAYE  2 , SHLOKA 4 , 28th December 2022 ,  Wednesday

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।

देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥४॥

विजय के साधन स्वरूप इस श्रीमद्भागवतम् का पाठ करने (सुनने) के पूर्व मनुष्य को भगवान् श्रीनारायण को, नरोत्तम नर-नारायण ऋषि को, विद्या की देवी माता सरस्वती को तथा ग्रन्थकार श्रील व्यासदेव को नमस्कार करना चाहिए।

SAKANDH 1 , ADHYAYE  2 , SHLOKA 5 , 29th December 2022 , Thursday

मुनयः साधु पृष्टोऽहं भवद्भिर्लोकमङ्गलम् ।

 यत्कृतः कृष्णसम्प्रश्नो येनात्मा सुप्रसीदति ॥ ५॥

 

हे मुनियों! आपने मुझसे ठीक ही प्रश्न किया है।

आपके प्रश्न प्रशंसनीय हैं, क्योंकि उनका सम्बन्ध भगवान् श्रीकृष्ण से है और इस प्रकार वे विश्व कल्याण के लिए हैं।

ऐसे प्रश्नों से ही पूर्ण आत्मतुष्टि हो सकती है।

SAKANDH 1 , ADHYAYE  2 , SHLOKA 6 , 30th December 2022 , Friday

स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे ।

अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सुप्रसीदति ॥ ६॥

सम्पूर्ण मानवता के लिए परम वृत्ति (धर्म) वही है, जिसके द्वारा सभी मनुष्य श्रीभगवान् की दिव्य प्रेमाभक्ति प्राप्त कर सके।

ऐसी भक्ति निःस्वार्थ तथा अखण्ड होनी चाहिए, जिससे आत्मा पूर्ण रूप से तुष्ट हो सके।

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